नवरात्रि प्रारम्भ होते ही देवी माँ के नौ स्वरूपों की हर प्रकार से पूजा अर्चना की जाती है. हर एक भक्त को नवरात्रि के त्यौहार आने का इंतजार रहता है. नवरात्रि का पर्व हो और माता रानी का जागरण न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. माँ दुर्गा को प्रसन्न करने और उनकी भक्ति में डूबने के लिए लोग माता रानी का जागरण या जगराता करते हैं. लोग माँ के भक्तिमय गीतों के जरिये अपने ऊपर कृपा दृष्टि बनाये रखने की प्रार्थना करते हैं. इसमें माता की चौकी लगाई जाती है, जिसमें माता रानी का दरबार फूलों द्वारा सजाया जाता है एवं मन्त्र और भजनों द्वारा जागरण किया जाता है. लोग रात में जाग कर माँ के भजन गाते हैं व नृत्य करते है. माँ की आराधना करने से लोगों की आस्था दिखाई देती है जो ह्रदय से जुड़ी हुई है.
कलश स्थापना की विशेषता और जागरण का महत्त्व
दरबार में कलश की स्थापना होती है. इसे देवी-देवता की शक्ति, तीर्थ स्थान आदि का प्रतीक माना जाता है. कलश स्थापना से सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं की पूर्ति होती है. कलश हमेशा तांबे, मिट्टी व पीतल का शुभ माना जाता है. मान्यता है कि कलश के मुख में विष्णुजी, कंठ में शंकर जी और मूल में ब्रह्मा जी हैं. मध्य भाग में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं.
मातारानी के जागरण में तीन देवी – देवता की पूजा होती है
मातारानी के जागरण में तीन देवी और देवता की पूजा की जाती है और वे तीन देवी – देवता हैं माँ सरस्वती, निंद्रा माता एवं हनुमान जी. माँ सरस्वती को ज्ञान, साहित्य, संगीत और कला की देवी माना जाता है. माता सरस्वती का सम्बन्ध बुद्धि से है जो इन्सान को ज्ञानी बनाती है इसलिए लोग उन्हें ढोलक, मंजीरों आदि से प्रसन्न करते हैं. सरस्वती माता के आलावा माँ निंद्रा देवी की पूजा करना भी अनिवार्य है, जो लोग निंद्रा पर विजय पा लेते हैं उसे ही माँ सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस पूजा में बजरंगबली का भी होना अनिवार्य है. यह जागरण तब तक पूर्ण नहीं माना जायेगा जब तक हनुमान जी की पूजा न हो और हनुमान चालीसा का पाठ न किया जाये.